17 सितंबर -देव शिल्पी की जयंती के बाद- 2 ग्रह, राशि परिवर्तन कर मचाएंगे हलचल- ग्रह स्थिति से बड़े बदलाव के संकेत-& पितरों को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका & दुर्लभ पितृ सूक्तम्

HIGH LIGHT #ज्योतिर्विज्ञान में सूर्य को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। #आने वाले 10 दिनों में सूर्य और शुक्र राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। सूर्य और शुक्र के राशि परिवर्तन करने से सभी राशियां प्रभावित होंगी, # पितृ पक्ष के दौरान पितर धरती पर आते हैं. ऐसे में कुछ भी ऐसा काम न करें, जिसकी वजह से पितर नाराज हो जाएं# पितरों को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका — कुछ विशेष पेड़ों की पूजा#पितृ सूक्तम् पितृदोष निवारण में अत्यंत चमत्कारी मंत्र पाठ . #पढ़ना ना भूलें:# विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर 2022 # Himalayauk Newsportal की स्पेशल रिपोर्ट by Chandra Shekhar Joshi- Editor Mob. 9412932030

17 सितंबर से सूर्य कन्या राशि में रहेगा। इस राशि में बुध होने से बुधादित्य शुभ योग भी बनेगा। सूर्य की चाल में बदलाव होने का असर सभी राशियों पर पड़ेगा।  इस ग्रह स्थिति से देश-दुनिया में बड़े बदलाव होने के भी संकेत हैं। सूर्य की ये स्थिति राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तौर से सभी को प्रभावित करेगी। चार राशियों के लोगों की तरक्की और फायदे के योग बनेंगे।

17 सितंबर सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश ; सूर्य का राशि परिवर्तन होने से मेष, कर्क, वृश्चिक और धनु राशि वालों के लिए अच्छा समय रहेगा। ज्योतिषाचार्यो का कहना है कि राजनीतिक उथल-पुथल एवं प्राकृतिक आपदाओं की आशंका बढ़ेगी।  मिथुन, तुला और कुंभ राशि वाले लोगों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। 

17 सितंबर, शनिवार को सूर्य कन्या राशि में आ जाएगा और अगले महीने की 17 तारीख तक इसी राशि में रहेगा। फिर तुला में चला जाएगा। इस दौरान सभी राशियों पर सूर्य का असर पड़ेगा। सूर्य के कन्या राशि में आने से इसे कन्या संक्रांति कहा जाएगा।

17 सितंबर -देव शिल्पी की जयंती

पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार जिस दिन देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की ब्रह्माजी ने उत्पत्ति की, उस दिन कन्या संक्रांति थी। कन्या संक्रांति का योग सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश करने पर बनता है। हर साल यह दिन सूर्य की गति के अनुसार 17 सितंबर को ही पड़ता है। इसी दिन सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश होता है और देव शिल्पी की जयंती मनाई जाती है।

पितृ पक्ष के चलते सूर्य 17 सितंबर को कन्या राशि में आ जाएगा। वेदों और उपनिषदों में कहा गया है कि सूर्य जब कन्या में हो तब पितरों के लिए श्राद्ध करना चाहिए। ऐसे श्राद्ध से पितृ पूरे साल के लिए तृप्त हो जाते हैं। श्राद्ध पक्ष 25 सितंबर तक रहेगा। इसी तारीख को सर्वपितृ अमावस्या भी रहेगी। वहीं, सूर्य के कन्या राशि में रहते हुए शारदीय नवरात्रि और दशहरा महापर्व भी मनेगा।

पितृ पक्ष के दौरान पितर धरती पर आते हैं. ऐसे में कुछ भी ऐसा काम न करें, जिसकी वजह से पितर नाराज हो जाएं.

पितृ पक्ष के दौरान पितर धरती पर आते हैं. ऐसे में कुछ भी ऐसा काम न करें, जिसकी वजह से पितर नाराज हो जाएं. घर में पितरों को याद करने के लिए लोग उनकी तस्वीरें लगाते हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि पितरों की तस्वीरों को लगाने के भी कुछ नियम हैं.

पूजा स्थल से भी पितरों की तस्वीरें दूर रखी हों. पितरों की फोटो या तस्वीरों को कभी दीवार पर नहीं लगाना चाहिए. इसे हमेश लकड़ी के स्टैंड पर रखे. वरना पितरों का आशीर्वाद मिलने में दिक्कत हो सकती है. इसके साथ ही पितरों की तस्वीरों को घर के बीच जगह, किचन और बेडरूम में नहीं लगाना चाहिए.

पितरों की तस्वीरों को हमेशा दक्षिण दिशा की तरफ लगाना चाहिए. इसके साथ ही यह भी ध्यान रखें कि पितरों की तस्वीरों को कभी भी जीवित इंसान के साथ न लगाएं. तस्वीरों को ऐसी जगह पर लगाएं, जहां से कोई सीधे उन्हें देख न सके.

पितरों को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका — कुछ विशेष पेड़ों की पूजा

श्राद्ध पक्ष में पितरों की संतुष्टि के लिए तर्पण, पिंडदान के अलावा कुछ विशेष पेड़ों की पूजा का भी विधान है कहते हैं पितरों को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका होता है इस अवधि में पौधे लगना,उनकी सेवा और पूजा करना. मान्यता है इससे हर कार्य में सफलता मिलती है, आकस्मिक धन के योग बनते हैं और कभी दरिद्रता का वास नहीं होता. आइए जानते हैं श्राद्ध पक्ष में किन पेड़ों की पूजा से पितरों का शुभ आशीष मिलता है. बरगद के पेड़ को अक्षयवट भी कहा जाता है. पितृ पक्ष में बरगद की पूजा करने से पितरों को शांति मिलती है. बरगद का पेड़ देवतुल्य है, मान्यता है कि इसमें साक्षात भगवान भोलेनाथ का वास होता है.  श्राद्ध पक्ष में जल में काले तिल मिलाकर बरगद के पेड़ को अर्पित करने से पितरों की आत्मा तप्त होती है. पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध पक्ष काल में रोजाना इसके नीचे बैठकर शिव जी की पूजा करनी चाहिए.

हिंदू धर्म में पीपल को अत्याधिक पवित्र माना गया है. पूजा-पाठ और महत्वपूर्ण व्रत में पीपल की पूजा करने से सुख- समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. मान्यता है कि भगवान विष्णु स्वंय पीपल के पेड़ में निवास करते हैं. शनि दोष, पितृ दोष से मुक्ति के लिए पीपल की उपासना बहुत लाभकारी होती है. पीपल में पितरों का स्थान माना गया है. श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की मृत्यु तिथि पर श्राद्ध कर्म के बाद पीपल में जल अर्पित करने से उनकी आत्मा संतुष्ट होती है. पितृ दोष से छुटकारा पाने के लिए इस अवधि में रोजाना जल में दूध मिलाकर दोपहर में पीपल पर चढ़ाएं और शाम के समय सरसों के तेल का दीपक लगाकर पितृ सूक्त का पाठ करें. इससे पितृ दोष का प्रभाव कम हो जाएगा. ये उपाय हर अमावस्या पर करें.

कहते हैं बेल में शंकर जी और मां लक्ष्मी का वास होता है. मान्यता है कि जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हो जाती है, उनके परिवार वालों को श्राद्ध पक्ष में बेल वक्ष की पूजा करनी चाहिए इससे पूर्वजों की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है बेल का पौधा लगाने और उसकी सेवा करने से पितर प्रसन्न होते हैं. मान्यता है इससे जातक को संतान से संबंधित परेशानी, विवाह में आ रही बाधाएं, आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ता. श्राद्ध पक्ष में बेलपत्र के पेड़ में प्रात: काल जल में गंगाजल मिलाकर चढ़ाना शुभ होता है. इसका पौधा सोमवार को लगाना उत्तम माना गया है.

पितृ सूक्तम् पितृदोष निवारण में अत्यंत चमत्कारी मंत्र पाठ

यह पाठ शुभ फल प्रदान करने वाला सभी के लिए लाभदायी है। अमावस्या हो या पूर्णिमा अथवा श्राद्ध पक्ष के दिनों में संध्या के समय तेल का दीपक जलाकर पितृ-सूक्तम् का पाठ करने से पितृदोष की शांति होती है और सर्वबाधा दूर होकर उन्नति की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति जीवन में बहुत परेशानी का अनुभव करते हैं उनको तो यह पाठ प्रतिदिन अवश्‍य पढ़ना चाहिए। इससे उनके जीवन के समस्त संकट दूर होकर उन्हें पितरों का आशीष मिलता है…। पाठ के पश्चात् पीपल में जल अवश्य चढ़ाएं।

पितृसूक्त

उदीरतामवर उत् परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः ।

असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु ॥ १ ॥

नीचे, ऊपर और मध्य स्थानों मे रहनेवाले, सोमपान करने के योग्य हमारे सभी पितर उठकर तैयार हों । यज्ञ के ज्ञाता सौम्य स्वभाव के हमारे जिन पितरों ने नूतन प्राण धारण कर लिये हैं, वे सभी हमारे बुलाने पर आकर हमारी सुरक्षा करें।

इदं पितृभ्यो नमो अस्त्वद्य ये पूर्वासो य उपरास ईयुः ।

ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता ये वा नूनं सुवृजनासु विक्षु ॥ २ ॥

जो भी नये अथवा पुराने पितर यहॉं से चले गये हैं, जो पितर अन्य स्थानों में हैं और जो उत्तम स्वजनों के साथ निवास कर रहे हैं अर्थात् यमलोक, मर्त्यलोक और विष्णुलोक में स्थित सभी पितरों को आज हमारा यह प्रणाम निवेदित हो।

आहंपितृन् त्सुविदत्रॉं अवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः ।

बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वस्त इहागमिष्ठाः ॥ ३ ॥

उत्तम ज्ञान से युक्त पितरों को तथा अपांनपात् और विष्णु के  विक्रमण को, मैंने अपने अनुकूल बना लिया है । कुशासन पर बैठने के अधिकारी पितर प्रसन्नापूर्वक आकर अपनी इच्छा के अनुसार हमारे-द्वारा अर्पित हवि और सोमरस ग्रहण करें।

बर्हिषदः पितर ऊत्यर्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम् ।

त आ गतावसा शंतमेनाऽथा नः शं योरऽपो दधात ॥ ४ ॥

कुशासन पर अधिष्ठित होनेवाले हे पितर ! आप कृपा करके  हमारी ओर आइये । यह हवि आपके लिये ही तैयार की गयी है, इसे प्रेम से स्वीकार कीजिये । अपने अत्यधिक सुखप्रद प्रसाद के साथ आयें और हमें क्लेश रहित सुख तथा कल्याण प्राप्त करायें।

उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु ।

त आ गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान् ॥ ५ ॥

पितरों को प्रिय लगनेवाली सोमरुपी निधियों की स्थापना के बाद कुशासन पर हमने पितरों को आवाहन किया है । वे यहॉं आ जायँ और हमारी प्रार्थना सुनें । वे हमारी सुरक्षा करने के साथ ही देवों के पास हमारी ओर से संस्तुति करें।

आच्या जानु दक्षिणतो निषद्येमं यज्ञमभि गृणीत विश्र्वे ।

मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरुषता कराम ॥ ६ ॥

हे पितरो ! बायॉं घुटना मोडकर और वेदी के दक्षिण में नीचे बैठकर आप सभी हमारे इस यज्ञ की प्रशंसा करें । मानव-स्वभाव के अनुसार हमने आपके विरुद्ध कोई भी अपराध किया हो तो उसके कारण हे पितरो, आप हमें दण्ड मत दें ( पितर बायॉं घुटना मोडकर बैठते हैं और देवता दाहिना घुटना मोडकर बैठना पसन्द करते हैं ) ।

आसीनासो अरुणीनामुपस्थे रयिं धत्त दाशुषे मर्त्याय ।

पुत्रेभ्यः पितरस्तस्य वस्वः प्र यच्छत त इहोर्जं दधात ॥ ७ ॥

अरुणवर्ण की उषादेवी के अङ्क में विराजित हे पितर ! अपने इस मर्त्यलोक के याजक को धन दें, सामर्थ्य दें तथा अपनी प्रसिद्ध सम्पत्ति में से कुछ अंश हम पुत्रों को देवें।    

ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः ।

तेभिर्यमः संरराणो हवींष्युशन्नुशद्भिः प्रतिकाममत्तु ॥ ८ ॥

( यम के सोमपान के बाद ) सोमपान के योग्य हमारे वसिष्ठ कुल के सोमपायी पितर यहॉं उपस्थित हो गये हैं । वे हमें उपकृत करने के लिये सहमत होकर और स्वयं उत्कण्ठित होकर यह राजा यम हमारे-द्वारा समर्पित हवि को अपनी इच्छानुसार ग्रहण करें।

ये तातृषुर्देवत्रा जेहमाना होत्राविदः स्तोमतष्टासो अर्कैः ।

आग्ने याहि सुविदत्रेभिरर्वाङ् सत्यैः कव्यैः पितृभिर्घर्मसद्भिः ॥ ९ ॥

अनेक प्रकार के हवि-द्रव्यों के ज्ञानी अर्कों से, स्तोमों की सहायता से जिन्हें निर्माण किया है, ऐसे उत्तम ज्ञानी, विश्र्वासपात्र घर्म नामक हवि के पास बैठनेवाले ‘ कव्य ‘ नामक हमारे पितर देवलोक में सॉंस लगने की अवस्था तक प्यास से व्याकुल हो गये हैं । उनको साथ लेकर हे अग्निदेव ! आप यहॉं उपस्थित होवें।

ये सत्यासो हविरदो हविष्पा इन्द्रेण देवैः सरथं दधानाः ।

आग्ने याहि सहस्त्रं देववन्दैः परैः पूर्वैः पितृभिर्घर्मसद्भिः ॥ १० ॥

कभी न बिछुडनेवाले, ठोस हवि का भक्षण करनेवाले, द्रव हवि का पान करनेवाले, इन्द्र और अन्य देवों के साथ एक ही रथ में प्रयाण करनेवाले, देवों की वन्दना करनेवाले, घर्म नामक हवि के पास बैठनेवाले जो हमारे पूर्वज पितर हैं, उन्हें सहस्त्रों की संख्या में लेकर हे अग्निदेव ! यहॉं पधारें।

अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदः सदः सदत सुप्रणीतयः ।

अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्यथा रयिं सर्ववीरं दधातन ॥ ११ ॥

अग्नि के द्वारा पवित्र किये गये हे उत्तमपथ प्रदर्शक पितर ! यहॉं आइये और अपने-अपने आसनों पर अधिष्ठित हो जाइये । कुशासन पर समर्पित हविर्द्रव्यों का भक्षण करें और ( अनुग्रहस्वरुप ) पुत्रों से युक्त सम्पदा हमें समर्पित करा दें।

त्वमग्न ईळतो जातवेदो ऽवाड्ढव्यानि सुरभीणि कृत्वी ।

प्रादाः पितृभ्यः स्वधया ते अक्षन्नद्धि त्वं देव प्रयता हवींषि ॥ १२ ॥

हे ज्ञानी अग्निदेव ! हमारी प्रार्थना पर आप इस हवि को मधुर बनाकर पितरों ने भी अपनी इच्छा के अनुसार उस हवि का भक्षण किया । हे अग्निदेव ! ( अब हमारे-द्वारा ) समर्पित हवि को आप भी ग्रहण करें।

ये चेह पितरो ये च नेह यॉंश्च विद्म यॉं उ च न प्रविद्म ।

त्वं वेत्थ यति ते जातवेदः स्वधाभिर्यज्ञं सुकृतं जुषस्व ॥ १३ ॥

जो हमारे पितर यहॉं ( आ गये ) हैं और जो यहॉं नही आये हैं, जिन्हें हम जानते हैं और जिन्हें हम अच्छी प्रकार जानते भी नहीं; उन सभी को, जितने ( और जैसे ) हैं, उन सभी को हे अग्निदेव ! आप भली भॉंति पहचानते हैं । उन सभी की इच्छा के अनुसार अच्छी प्रकार तैयार किये गये इस हवि को ( उन सभी के लिये ) प्रसन्नता के साथ स्वीकार करें।

ये अग्निदग्धा ये अनग्निदग्धा मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते ।

तेभिः स्वराळसुनीतिमेतां यथावशं तन्वं कल्पयस्व ॥ १४ ॥

हमारे जिन पितरों को अग्नि ने पावन किया है और जो अग्नि द्वारा भस्मसात] किये बिना ही स्वयं पितृभूत हैं तथा जो अपनी इच्छा के अनुसार स्वर्ग के मध्य में आनन्द से निवास करते हैं । उन सभी की अनुमति से, हे स्वराट् अग्ने ! ( पितृलोक में इस नूतन मृतजीव के ) प्राण धारण करने योग्य ( उसके ) इस शरीर को उसकी इच्छा के अनुसार ही बना दो और उसे दे दो ।

इति: पितृ सूक्तम् ॥

पितृसूक्तम् एक अन्य प्रकार से भी है-

पितृ-सूक्तम्

उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।

असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥1॥   

अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।

तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥2॥

ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।

तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥3॥

त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।

तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥4॥

त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।

वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥5॥

त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।

तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥6॥

बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।

तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥7॥

आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।

बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥8॥

उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।

तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥9॥

आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।

अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥10॥

अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।

अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥11॥

येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।

तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥12॥

अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।

ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥13॥

आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।

मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥14॥

आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।

पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥15॥

॥ ॐ शांति: शांति:शांति:॥

पितृ सूक्तम् समाप्त॥

पितृ सूक्तम् | पितृ पक्ष श्राद्ध पूजा | Pitru Paksha

  •   विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर 2022 
  • विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर 2022 (Vishwakarma jayanti 2022) को मनाई जाएगी. हर साल अश्विन माह की कन्या संक्रांति (Kanya Sankranti 2022) के दिन सृष्टि के पहले हस्तशिल्पकार, वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है. विश्वकर्मा जयंती  लोग अपने संस्थान, फैक्ट्रियों में औजारों और मशीनों की पूजा करते हैं. मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही देवताओं के अस्त्र (त्रिशूल, सुदर्शन चक्र आदि), भवन, स्वर्ग लोग, पुष्पक विमान का निर्माण किया था. सुबह का मुहूर्त –  सुबह 07 बजकर 39- 09 बजकर 11 (17 सितंबर 2022) दोपहर का मुहूर्त – 01 बजकर 48 – 03 बजकर 20 (17 सितंबर 2022) तीसरा मुहूर्त – दोपहर 03 बजकर 20 –  शाम 04 बजकर 52 (17 सितंबर 2022)
  • भगवान विश्वकर्मा ब्रह्मा जी के मानस पुत्र माने जाते हैं. मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से तमाम इंजीनियर, मिस्त्री, वेल्डर, बढ़ई, जैसे कार्य से जुड़े लोग अधिक कुशल बनते हैं. शिल्पकला का विकास होता है. कारोबार में बढ़ोत्तरी होती है साथ ही धन-धान्य और सुख-समृद्धि का आगमन होताहै. भगवान विश्वकर्मा को संसार का पहला बड़ा इंजीनियर माना जाता है. इस दिन दुकान, वर्कशाप, फैक्ट्री में यंत्रों और औजारों की पूजा करने से कार्य में कभी कोई रुकावट नहीं आती और खूब तरक्की होती है. कहते हैं कि भगवान विश्वकर्मा ने स्वर्ग लोक, सोने की लंका, द्वारिका और हस्तिनापुर का निर्माण किया था.
  • Deposit yr Contribution; Himalaya Gaurav Uttrakhand Bank: State Bank of India, Saharanpur Road Dehradun IFS CODE; sbin0003137 Mob. 9412932030

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