8 OCT; सप्तम दिवसः किष्किंधाकाण्ड ; पर्वतीय रामलीला, धर्मपुर देहरादून

dsc02313किष्किंधाकाण्ड का मंचन सप्‍तम दिवस ः पर्वतीय रामलीला, धर्मपुर देहरादून में शनिवारः 08 अक्टूबर को मुख्य प्रसंग ;सप्तम दिवसः किष्किंधाकाण्ड की लीला तक
पर्वतीय रामलीला, धर्मपुर देहरादून में मुख्य प्रसंगः शबरी आश्रम, राम सुग्रीव मैत्री, बाली वध, वर्षाकाल वर्णन, लंका दहन आदि का मंचन होगा।
चन्द्रशेखर जोशी उपाध्‍यक्ष पर्वतीय रामलीला, धर्मपुर देहरादून द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार सप्तम दिवस में रामलीला का सार रामचरित मानस के अनुसारः
किष्किंधाकाण्ड में किष्किंधाकाण्ड में हनुमान मिलन से बालि वध व सीता खोज की तैयारी तक के घटनाक्रम आते हैं। मंगलाचरण. श्री रामजी से हनुमानजी का मिलना और श्री राम-सुग्रीव की मित्रता, सुग्रीव का दुःख सुनाना, बालि वध की पतिज्ञा, श्री रामजी का मित्र लक्षण वर्णन, सुग्रीव का वैराग्य, बालि-सुग्रीव युद्ध, बालि उद्धार, तारा का विलाप, तारा को श्री रामजी द्वारा उपदेश और सुग्रीव का राज्याभिषेक तथा अंगद को युवराज पद, वर्षा ऋतु वर्णन, शरद ऋतु वर्णन, श्री राम की सुग्रीव पर नाराजी, लक्ष्मणजी का कोप, सुग्रीव-राम संवाद और सीताजी की खोज के लिए बंदरों का प्रस्थान, गुफा में तपस्विनी के दर्शन, वानरों का समुद्र तट पर आना, सम्पाती से भेंट और बातचीत, समुद्र लाँघने का परामर्श, जाम्बवन्त का हनुमान्जी को बल याद दिलाकर उत्साहित करना, श्री राम-गुण का माहात्म्य आदि हैं।

पर्वतीय रामलीला, धर्मपुर देहरादून के उपाध्‍यक्ष चन्द्रशेखर जोशी ने बताया कि पर्वतीय रामलीला, धर्मपुर देहरादून में सप्तम दिवस में बह्मवेत्त ऋषि मतंग की शिष्या शबरी जाति की बुढी स्त्री थी। तब मतंग ऋषि ने कहा कि हे भीलनी शबरी, तू सेवा करते रहना, एक दिन भगवान तेरे द्वार पर अवश्य आएंगें। तेरा कल्याण होगा। समय आया तो प्रभु राम व लक्ष्मण एक दिन शबरी के आश्रम में आ गये। शबरी का जीवन धन्य हो गया। भक्ति में नवधा भक्ति जब भगवान ने उसमें देखा तो उसके आतिथ्य में झूठे बैर का भोग भी लगाया व उसे अपने धाम पहुंचा दिया जो कि बडे -बडे ऋषि मुनियों को भी वह गति दुर्लभ है। शबरी के कथनानुसार ऋष्यमूक पर्वत पर पम्पापुर का राजा बालि का भाई सुग्रीव अगने भ्राता के अत्याचारों से पीडित होकर छुपा रहता था। वह पर्वत पर श्रापवश नही जाता था। वहां सुग्रीव, हनुमान व जामवंत के साथ रहता था। प्रभुराम व लक्ष्मण को आते देख सुग्रीव ने हनुमान से भेष बदल कर उनका पता लगाने को कहा। हनुमान ने वही किया तथा तीनों लोकों के स्वामी रामजी से मित्रता कराई। सुग्रीव ने अपना दुखडा सुनाया। तो प्रभु राम ने कहा कि दुष्टों के नाश को ही हम क्षत्रिय धनुष बाण को धारण करते हैं। बालिका वध करके सुग्रीव को राज्य दे दिया। सुग्रीव ने भी मित्रता की रस्म निभाई तथा माता सीता की खोज में चारों दिशाओं को बंदर भेजे। दक्षिण दिशा में हनुमान, अंगद, जामवंत आदि वानरों को भेजा। सौ योजन का समुद्र था। सम्पाति जो कि जटायु का भाई था। उसने सहायता की। बताया कि १०० योजन परी त्रिकूट पर्वत है। वहां सोने की लंका है। वहां रावण रहता है। आप वहां जाओ, माता सीता वही है। हनुमान ने लंका जाकर माता का पता लगाया। रावण का भाई विभीषण से हनुमान की भेंट हुई। विभीषण ने अशोक वन में सीता जी के सन्दर्भ में हनुमान को बताया। हनुमान ने माता सीता से भेंट की व अपना परिचय देकर प्रभु राम का संदेश सुनाया। व फल खाकर रावण पुत्र अक्षय का वध कर दिया। पुत्र के वध का समाचार रावण ने सुना तो मेघनाद को भेजकर बंदी बनाकर रावण के दरबार में लाया गया। सभासदों व मंत्रियों के मतानुसार हनुमान की पूछ पर आग लगा दी। हनुमान ने जली पूंछ से सारी लंका को जलाकर राख कर दिया। रावण तिलमिला उठा। मणि माणिक सोना सब गल गया। अब तो रावण को चिंता हो गयी कि अब हमारे विनाश का समय आ गया।
सप्तम दिवसः किष्किंधाकाण्ड की लीला तक समाप्त होती है।
चन्द्रशेखर जोशीः पर्वतीय रामलीला कमेटीः ९४१२९३२०३० द्वारा जारीः

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